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"निगाहों के शरारे से"

 





 "उलट  दूं  मैं  ज़मीं  को
 एक अबरू के इशारे से!
 मैं  चाहूं तो समन्दर  दूर
 हट  जाये   किनारे  से !!
 मचलती  है   सुबह  की
 गोद में, ये लालिमा मेरी!
 कहो तो फूंक दें अम्बर,
 निगाहों  के  शरारे  से!!"
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